गंगा महोत्सव, वाराणसी: भक्ति, संगीत और दीपों की छटा

वाराणसी — भारत की धार्मिक राजधानी, जहाँ हर सुबह गंगा आरती से शुरू होती है और हर शाम दीपों की रौशनी में गंगा की आराधना होती है। इसी पवित्र नगरी में हर साल मनाया जाता है एक अनुपम उत्सव — गंगा महोत्सव, जो गंगा की महिमा, भारतीय संस्कृति, संगीत, कला और अध्यात्म का भव्य संगम है।


गंगा महोत्सव: क्या है इसका महत्व?

गंगा महोत्सव उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित एक सांस्कृतिक उत्सव है, जो हर साल कार्तिक पूर्णिमा के आसपास, पांच दिनों तक मनाया जाता है।
इस उत्सव का उद्देश्य है:

  • माँ गंगा की पवित्रता और सांस्कृतिक विरासत को सम्मान देना
  • वाराणसी को एक सांस्कृतिक गंतव्य के रूप में बढ़ावा देना
  • लोककला, संगीत और हस्तशिल्प को मंच प्रदान करना

दीपदान: जब गंगा हो जाती हैं स्वर्णमयी

इस उत्सव का सबसे मनमोहक दृश्य होता है — दीपदान
हज़ारों दीये जब गंगा की लहरों पर एक साथ तैरते हैं, तो लगता है मानो धरती पर स्वर्ग उतर आया हो
लोग अपनी मनोकामनाओं के साथ दीया प्रवाहित करते हैं, और पूरा घाट प्रकाश और भक्ति के समर्पण से भर उठता है।


संगीत, नृत्य और संस्कृति का महासंगम

गंगा महोत्सव के दौरान, वाराणसी के घाटों पर आयोजित होते हैं:

  • शास्त्रीय संगीत और नृत्य की प्रस्तुतियाँ (कथक, भरतनाट्यम, शास्त्रीय गायन)
  • लोकगीतों और लोकनृत्यों का प्रदर्शन — जैसे बिरहा, आल्हा, और भोजपुरी गाथाएँ
  • देश-विदेश के प्रसिद्ध कलाकार यहाँ प्रस्तुति देने आते हैं
  • बनारस की मशहूर शहनाई और तबले की धुनें भी इस महोत्सव का अभिन्न हिस्सा हैं

हस्तशिल्प और खान-पान की झलक

घाटों के पास लगे मेले में:

  • उत्तर प्रदेश और आसपास के राज्यों की हस्तकला, कपड़े, आभूषण और कलाकृतियाँ देखने को मिलती हैं
  • बनारसी साड़ी से लेकर मिट्टी के दीये, लकड़ी की मूर्तियाँ और पारंपरिक खिलौनों तक सब कुछ मिलता है
  • साथ ही लजीज़ बनारसी पान, कचौड़ी, चाट, ठंडई और मालइयो जैसे व्यंजन स्वाद के साथ संस्कृति का रस भी घोलते हैं

नाव यात्रा और गंगा आरती का अनुभव

महोत्सव के दौरान, लोग गंगा की नाव यात्रा करते हैं और घाटों पर हो रही विशेष गंगा आरती का आनंद लेते हैं।

  • दशाश्वमेध घाट की आरती, रोशनी और मंत्रोच्चार के साथ एक अलौकिक अनुभव देती है
  • नाव पर बैठकर आरती देखना एक ऐसी अनुभूति है जिसे शब्दों में बाँधा नहीं जा सकता

कब और कहाँ मनाया जाता है?

  • स्थान: वाराणसी (मुख्य रूप से दशाश्वमेध घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट, संत रविदास घाट)
  • समय: कार्तिक पूर्णिमा से पाँच दिन पूर्व (अक्टूबर–नवंबर के बीच)

निष्कर्ष

गंगा महोत्सव केवल एक धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन नहीं, यह एक भावनात्मक, आध्यात्मिक और सामाजिक अनुभव है।
यहाँ माँ गंगा के प्रति श्रद्धा, भारतीय संगीत की गरिमा, लोककला की समृद्धि और समाज की एकजुटता — सब एक साथ देखने को मिलते हैं।

यदि आप जीवन में कभी गंगा महोत्सव नहीं देखे हैं, तो एक बार ज़रूर जाएं — क्योंकि यह वह अनुभव है जो आत्मा तक को छू जाता है।


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