गड्ढों से भरी सड़कें – हादसों का निमंत्रण

भारत में अगर कोई एक चीज़ हर शहर, कस्बे और गांव में एक जैसी मिलेगी, तो वो है — गड्ढों से भरी सड़कें। सड़कें जो कभी कंक्रीट की थीं, आज धूल, कीचड़ और गड्ढों में तब्दील हो चुकी हैं। ये गड्ढे सिर्फ असुविधा का कारण नहीं, बल्कि रोज़ाना होने वाली दुर्घटनाओं के बड़े कारण बन चुके हैं।

हर गड्ढा — एक नया खतरा

गड्ढे छोटे हों या बड़े, उनके असर गंभीर होते हैं:

  • बाइक सवार फिसलकर गिर जाते हैं
  • गाड़ी का टायर फट जाता है या बैलेंस बिगड़ता है
  • रात में गड्ढे न दिखें तो सीधा एक्सीडेंट
  • बरसात में गड्ढे पानी में छिप जाते हैं, जिससे खतरा दोगुना हो जाता है

कुछ चौंकाने वाले आंकड़े

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल हजारों लोग गड्ढों की वजह से होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवाते हैं। इन मौतों का कोई स्थायी दोषी नहीं होता — न कोई पूछने वाला, न कोई जवाबदेह।

गड्ढे क्यों नहीं भरते?

  1. घटिया निर्माण सामग्री – सड़कें एक-एक बारिश में उखड़ जाती हैं
  2. अनियोजित निर्माण कार्य – बार-बार खुदाई और अधूरी मरम्मत
  3. प्रशासनिक उदासीनता – शिकायतों के बावजूद कोई ऐक्शन नहीं
  4. भ्रष्टाचार – टेंडर में घपला, काम अधूरा और निगरानी गायब

बच्चे और बुजुर्ग सबसे ज़्यादा प्रभावित

स्कूल जाने वाले बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं जब गड्ढों वाली सड़कों से गुजरते हैं तो उन्हें चलने में बहुत परेशानी होती है। कई बार गड्ढों में गिरकर चोटें भी लगती हैं, जो सड़क की बदहाली का सीधा प्रमाण हैं।

हम कब तक चुप रहेंगे?

गड्ढों को देखकर गुस्सा तो सबको आता है, लेकिन ज़रूरत है संगठित होकर आवाज़ उठाने की:

  • स्थानीय नगर निगम में शिकायत दर्ज करें
  • RTI के ज़रिए पूछें — मरम्मत कब और कितनी बार हुई?
  • गड्ढों की फोटो-वीडियो लेकर सोशल मीडिया पर साझा करें
  • जनप्रतिनिधियों को टैग करें और जवाब मांगें

क्या हो सकता है समाधान?

  1. GPS आधारित गड्ढा रिपोर्टिंग ऐप – लोग खुद गड्ढों की जानकारी भेजें
  2. 30 दिन में मरम्मत की अनिवार्यता – समय सीमा तय हो
  3. घटिया काम पर सख्त जुर्माना – ठेकेदार की जवाबदेही तय हो
  4. जन भागीदारी – लोग नियमित निगरानी करें

गड्ढा नहीं, ये सिस्टम की खामी है

जब गड्ढे सड़कों पर दिखाई देते हैं, तो असल में वो प्रशासनिक लापरवाही, भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों को उजागर करते हैं। ये सड़क पर नहीं, सिस्टम में हैं। और इनको भरना सिर्फ सरकारी काम नहीं, जनता की जागरूकता से ही मुमकिन है।


निष्कर्ष

गड्ढों से भरी सड़कें आज सिर्फ असुविधा नहीं, बल्कि मौत का जाल बन चुकी हैं। हम तब तक सुरक्षित नहीं जब तक हमारी सड़कें सुरक्षित नहीं।

अब वक्त आ गया है कि हम “गड्ढों से समझौता” बंद करें और “सड़क सुरक्षा के लिए संघर्ष” शुरू करें।

आवाज़ उठाइए — क्योंकि हर गड्ढा, एक और जान ले सकता है।

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