क्या आज की शिक्षा प्रणाली युवाओं को तैयार कर रही है?

लेखक: एक जागरूक नागरिक की कलम से

“पढ़ो, अच्छे अंक लाओ, और फिर एक अच्छी नौकरी पाओ।”
हमारे समाज में यह एक पुराना लेकिन आज भी ज़िंदा मंत्र है, जो शिक्षा की परिभाषा को सीमित कर देता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या आज की शिक्षा प्रणाली वाकई युवाओं को आने वाले जीवन के लिए तैयार कर रही है?

किताबी ज्ञान बनाम वास्तविक दुनिया

आज भी अधिकतर स्कूल और कॉलेजों में शिक्षा का तरीका वही है – रटकर याद करना और परीक्षा में अंक लाना। सोचने, सवाल करने, या नया करने की प्रेरणा कम ही दी जाती है। युवा जब कॉलेज से निकलते हैं, तो उनके पास डिग्री होती है, लेकिन आत्मविश्वास, सॉफ्ट स्किल्स और निर्णय लेने की क्षमता की कमी होती है।

नौकरी के लायक या जिंदगी के लायक?

कंपनियाँ आए दिन यह शिकायत करती हैं कि नए ग्रैजुएट्स “जॉब रेडी” नहीं हैं। मतलब, डिग्री तो है, पर काम करने की असली योग्यता नहीं। दूसरी ओर, शिक्षा हमें जीवन जीने की कला भी नहीं सिखाती – जैसे कि वित्तीय समझ, मानसिक स्वास्थ्य, या रिश्तों की समझ।

रचनात्मकता और नवाचार की कमी

हमारा पाठ्यक्रम आज भी ज़्यादातर थ्योरी पर आधारित है। कोडिंग, डिज़ाइन, स्टार्टअप सोच, डिजिटल स्किल्स – ये सब बहुत बाद में या बाहर के कोर्स से सीखने को मिलता है। क्या स्कूल में बच्चे को एक प्रॉब्लम सॉल्वर या लीडर बनने का मौका मिलता है?

बदलती दुनिया, पुराना सिस्टम

आज का युग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और रिमोट वर्क का है। लेकिन हमारी शिक्षा प्रणाली अब भी वही किताबें पढ़ा रही है, जो दशकों पहले लिखी गई थीं। बदलाव की रफ्तार इतनी तेज़ है कि अगर शिक्षा तेज़ी से अपडेट नहीं हुई, तो युवा पीछे छूट जाएंगे।

उम्मीद की किरण

हालांकि, कुछ सकारात्मक प्रयास भी हो रहे हैं – जैसे नई शिक्षा नीति (NEP), जिसमें लचीलापन, कौशल-आधारित शिक्षा और रचनात्मकता पर ज़ोर है। कुछ निजी स्कूल और स्टार्टअप्स इस बदलाव को अपनाने लगे हैं। लेकिन यह अभी भी बहुत सीमित है।


निष्कर्ष

आज की शिक्षा प्रणाली युवाओं को सर्टिफिकेट्स के लिए तो तैयार कर रही है, लेकिन जीवन और करियर की असली चुनौतियों के लिए नहीं। अगर हमें सच में एक प्रगतिशील और आत्मनिर्भर भारत बनाना है, तो हमें ऐसी शिक्षा देनी होगी जो युवा को सोचने, चुनने और आगे बढ़ने की आज़ादी दे।

शिक्षा सिर्फ किताबों से नहीं, अनुभवों से भी आती है।
चलिए एक ऐसी प्रणाली की ओर बढ़ें जो बच्चों को सिर्फ पढ़ाए नहीं, बल्कि उन्हें तैयार करे – ज़िंदगी के लिए।

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