जब हम ‘मेले’ की बात करते हैं, तो आंखों के सामने रंग-बिरंगे झूले, बच्चों की खिलखिलाहट, गरमागरम जलेबी की खुशबू और लोक संगीत की हल्की-सी गूंज उभर आती है। लेकिन क्या मेला सिर्फ इन चीज़ों का नाम है?
नहीं। मेला एक एहसास है – एक ऐसा अनुभव जो दिल को छू जाता है, जो यादों में बस जाता है।
रंगों की दुनिया, भावनाओं की जुबान
मेले में हर रंग बोलता है – साड़ी की लाल किनारी, झूलों की चमकीली रोशनी, गुब्बारों की उड़ती लहरें… ये सिर्फ देखने भर की चीज़ें नहीं होतीं, ये उस समाज की संस्कृति और खुशियों का प्रतीक होती हैं।
बचपन की सबसे मीठी यादें
हर किसी के बचपन में कोई ना कोई मेला ज़रूर होता है, जहाँ पहली बार झूला झूला, खिलौना लिया, या बिना बताए भीड़ में खो गए थे। वो खो जाना और फिर मां की आवाज़ सुनकर दौड़ पड़ना – वो एक छोटा-सा डर भी अब प्यारी सी याद बन गया है।
हर चेहरे पर कहानी होती है
- चाट वाले अंकल की मुस्कान
- चूड़ी बेचती दादी के अनुभव
- ढोलक की थाप पर झूमती टोली
हर किसी की अपनी-अपनी कहानी होती है, और मेला वो जगह है जहाँ ये सब कहानियाँ एक साथ जीवंत हो जाती हैं।
मंच नहीं, संस्कृति का आईना
मेले सिर्फ तम्बू और स्टॉल नहीं होते – ये हमारी लोककला, बोलियों, नृत्य और परंपराओं को जीवित रखने का माध्यम होते हैं। यहाँ जो नाटक, गीत और प्रदर्शन होते हैं, वो पीढ़ियों से चले आ रहे हैं – बिना किसी मंच के, लेकिन पूरे दिल से।
सामूहिकता का प्रतीक
आज की व्यस्त ज़िंदगी में जहाँ लोग खुद में सिमटते जा रहे हैं, वहीं मेला वह जगह है जहाँ अजनबी भी एक-दूसरे के साथ हँसते-गाते दिखते हैं। यहाँ ‘मैं’ नहीं, ‘हम’ होता है।
यादों का तिजोरी
आजकल जब हर पल कैमरे में कैद होता है, मेला उन पलों से भरा होता है जो बिना कैमरे के भी ज़हन में हमेशा के लिए कैद हो जाते हैं – पहला झूला, पहली पेंटिंग खरीदी, पहली बार किसी लोकनृत्य को पास से देखा।
अंतिम शब्द
मेला सिर्फ घूमने की जगह नहीं है, वो तो जीवन की झलक है।
यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है, एक-दूसरे से मिलाता है और यह याद दिलाता है कि खुशी कोई बड़ी चीज़ नहीं, बस एक गुलाबी गुब्बारा भी हो सकती है।
अगर आप मेले में गए हैं, तो अगली बार बस खरीदारी या झूले के लिए नहीं – वहाँ की कहानियों को महसूस करने जाएं, वहाँ की आत्मा को देखें। क्योंकि…
“मेला केवल मनोरंजन नहीं, एक अनुभव है!”