भारत के अधिकतर शहरों में ट्रैफिक जाम अब एक नियमित दिनचर्या बन चुका है। लेकिन जब इसका कारण बनती हैं अधूरी और टूटी-फूटी सड़कें, तब सवाल उठता है — क्या ये सिर्फ विकास कार्य हैं, या योजनाओं की असफलता का नमूना?
हर दिन लाखों लोग, घंटों तक ट्रैफिक में फंसे रहते हैं, बस इस इंतज़ार में कि सड़क कब पूरी होगी और रास्ता कब साफ़ मिलेगा। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है, ये इंतज़ार भी अनंत होता जाता है।
अधूरी सड़कें: जनता के लिए सज़ा
जब कोई सड़क खोद दी जाती है लेकिन महीनों तक अधूरी छोड़ दी जाती है, तो इसका असर पूरे शहर पर पड़ता है:
- एक ही लेन में सारा ट्रैफिक — जाम तय
- वैकल्पिक मार्गों पर भीड़ बढ़ जाती है
- दुपहिया चालकों के लिए रास्ता और भी खतरनाक
- स्कूल, ऑफिस, हॉस्पिटल पहुँचने में घंटों की देरी
क्यों होती है बार-बार देरी?
- बिना योजना के खुदाई — कभी बिजली विभाग, तो कभी पानी की पाइप लाइन
- टेंडर की जटिल प्रक्रिया — काम शुरू होने में महीनों लग जाते हैं
- मानसून के बहाने — बारिश आते ही काम रोक दिया जाता है
- फंड की कमी या रुकावट — बजट स्वीकृति में देरी
आम आदमी की परेशानी
- रोज़ाना ऑफिस पहुँचने में देरी
- मरीजों की एंबुलेंस जाम में फंसी रहती है
- बच्चों को स्कूल छोड़ने में अतिरिक्त समय लगता है
- व्यापारी और दुकानदारों को ग्राहक नहीं मिलते
यानी एक अधूरी सड़क, पूरे क्षेत्र की साँसें रोक देती है।
आर्थिक और मानसिक नुकसान
ट्रैफिक जाम से सिर्फ समय नहीं, बल्कि ईंधन, शारीरिक ऊर्जा और मानसिक शांति भी खत्म होती है।
- पेट्रोल-डीजल की बर्बादी
- बढ़ता प्रदूषण
- गाड़ियों का तेज़ी से खराब होना
- गुस्सा और चिड़चिड़ापन बढ़ना
यह एक साइलेंट क्राइसिस है, जिसे हमने सामान्य मान लिया है।
क्या है समाधान?
- समयबद्ध निर्माण योजना: सड़क बननी शुरू हो, तो उसे तय समय में पूरा किया जाए
- वर्क ज़ोन मैनेजमेंट: निर्माण स्थलों पर स्पष्ट साइनबोर्ड और डायवर्जन की योजना
- रात के समय निर्माण कार्य: ट्रैफिक प्रभावित किए बिना काम हो सकता है
- जनता को सूचना देना: कब, कहाँ और कितने दिन तक काम चलेगा — ये पता होना चाहिए
- निगरानी और जवाबदेही: देरी पर जुर्माना और ठेकेदार की जिम्मेदारी तय हो
जनता क्या कर सकती है?
- ऑनलाइन शिकायत पोर्टल का इस्तेमाल करें
- आरटीआई के ज़रिए काम की जानकारी माँगें
- सोशल मीडिया पर वीडियो और फोटो पोस्ट करके आवाज़ उठाएं
- स्थानीय जनप्रतिनिधियों से संपर्क करें
निष्कर्ष
अधूरी सड़कें सिर्फ एक निर्माण कार्य नहीं, बल्कि जनता की असहायता और सिस्टम की सुस्ती का प्रतीक हैं। अगर समय रहते इन समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो शहरों का ट्रैफिक और नागरिक जीवन दोनों पूरी तरह जाम हो जाएंगे।
अब ज़रूरत है जागरूकता की, भागीदारी की, और जवाबदेही की।
क्योंकि सड़कें अधूरी रहें, तो सफर कैसे पूरा होगा?