बरसात में सड़कों की दुर्दशा: जिम्मेदार कौन?

हर साल जैसे ही मानसून दस्तक देता है, हमारे शहरों और गांवों की असली तस्वीर सामने आ जाती है — टूटी सड़कों, गहरे गड्ढों और पानी से भरे रास्तों की तस्वीर। सड़कें जो एक साल पहले बनी थीं, पहली बारिश में ही टूट जाती हैं। क्या ये सिर्फ मौसम की मार है या किसी की जिम्मेदारी की दरकार है?

बारिश आते ही सोशल मीडिया पर एक जैसी तस्वीरें वायरल होने लगती हैं — डूबी हुई गाड़ियाँ, गड्ढों में गिरते स्कूटर और ट्रैफिक में फंसे लोग। सवाल उठता है — हर साल एक जैसी कहानी क्यों दोहराई जाती है?


बारिश और सड़कों की दोस्ती कब टूटेगी?

बरसात में सड़कों की हालत खराब होने के पीछे कई कारण हैं:

  1. घटिया निर्माण सामग्री
    कई बार सड़कों का निर्माण सस्ते और कमजोर मटीरियल से होता है, जो एक बारिश भी नहीं झेल पाता।
  2. सतही मरम्मत का खेल
    मरम्मत केवल ऊपर से की जाती है, जिससे अंदर की कमजोरियां बनी रहती हैं।
  3. जल निकासी की विफलता
    सड़क के किनारे जल निकासी की व्यवस्था नहीं होती, जिससे पानी जमा होता है और सड़क टूट जाती है।
  4. जल्दबाज़ी में किए गए काम
    बरसात से ठीक पहले किए गए मरम्मत कार्य केवल दिखावे के लिए होते हैं, जो जल्द ही धुल जाते हैं।

नुकसान किसका होता है?

  • वाहन चालकों के लिए खतरा और वाहन की मरम्मत का खर्च
  • दुपहिया सवारों के लिए जानलेवा गड्ढे
  • एंबुलेंस और पब्लिक ट्रांसपोर्ट की रफ्तार धीमी
  • दुकानदारों और स्थानीय व्यापार पर असर
  • स्कूल, कॉलेज, ऑफिस पहुंचने में देरी और तनाव

जिम्मेदारी किसकी है?

जब सड़कें टूटती हैं, तो कोई सामने नहीं आता। पर असल में जवाबदेही तय की जानी चाहिए:

  • ठेकेदार: जिनको सड़क बनाने का टेंडर मिला
  • नगर निगम/प्रशासन: जिन्होंने निगरानी नहीं की
  • सरकार: जो बजट देती है, पर परिणाम नहीं देखती
  • जनता: जो शिकायत नहीं करती, सिर्फ सहती है

क्या किया जा सकता है?

  1. RTI के ज़रिए पूछताछ
    किसने सड़क बनाई, कितनी लागत आई और कितने समय की गारंटी थी?
  2. ऑनलाइन शिकायत दर्ज करें
    नगर निगम और PWD की वेबसाइट या मोबाइल ऐप पर गड्ढों और टूटी सड़कों की रिपोर्ट करें।
  3. सोशल मीडिया पर जागरूकता फैलाएं
    #BadRoads, #RainDamage जैसे हैशटैग से फोटो-वीडियो पोस्ट करें।
  4. स्थानीय प्रतिनिधियों से संपर्क करें
    पार्षद या विधायक को शिकायत पत्र दें, सामूहिक दबाव बनाएं।

समाधान की राह

  • प्री-मॉनसून ऑडिट: हर साल बरसात से पहले सड़कों की जांच होनी चाहिए।
  • सड़क गारंटी सिस्टम: सड़क बनने के बाद कुछ साल तक ठेकेदार की जिम्मेदारी तय हो।
  • टेक्नोलॉजी का उपयोग: ड्रोन सर्वे, GPS ट्रैकिंग और रिपोर्टिंग ऐप से निगरानी बढ़ाई जा सकती है।
  • जनभागीदारी: स्थानीय नागरिकों की निगरानी समिति बनाई जा सकती है।

निष्कर्ष

बरसात अपने साथ राहत लाती है, लेकिन जब सड़कों की हालत बद से बदतर हो जाए तो ये मौसम भी एक दु:स्वप्न बन जाता है। सड़कों की यह दुर्दशा प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव निर्मित है — लापरवाही, भ्रष्टाचार और ज़िम्मेदारी से भागने का नतीजा।

अब समय है सवाल पूछने का, जागरूक होने का, और आवाज़ उठाने का।
क्योंकि हर टूटी सड़क, एक टूटा सिस्टम दर्शाती है।

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