बेरोज़गारी: डिग्री के बाद भी नौकरी क्यों नहीं?

लेखक: एक पढ़ा-लिखा बेरोज़गार

“बी.ए. किया, एम.ए. किया, कंप्यूटर कोर्स किया… अब क्या PhD करूं?”
यह डायलॉग अब मज़ाक नहीं, हकीकत बन चुका है। भारत में लाखों युवा हर साल डिग्रियाँ लेकर कॉलेज से बाहर निकलते हैं, लेकिन नौकरी के दरवाज़े अब भी बंद रहते हैं।

तो सवाल उठता है – क्या डिग्री ही सब कुछ है? अगर हां, तो फिर नौकरी क्यों नहीं मिल रही?


डिग्री तो है, स्किल्स कहां?

सच्चाई यही है कि ज़्यादातर युवाओं के पास डिग्री तो होती है, लेकिन आज की नौकरी की ज़रूरतों के अनुसार व्यावसायिक कौशल (skills) की भारी कमी होती है।
जैसे –

  • कम्युनिकेशन स्किल्स
  • टीम वर्क
  • प्रैक्टिकल नॉलेज
  • डिजिटल स्किल्स
  • इंटरव्यू में खुद को सही तरीके से पेश करना

हमारे कॉलेज सिर्फ सिलेबस पूरा करवा देते हैं, लेकिन असली दुनिया के लिए तैयार नहीं करते।


नौकरी नहीं, अवसर कम हैं

एक और सच्चाई यह भी है कि नौकरियाँ उतनी नहीं हैं, जितने उम्मीदवार। सरकारी भर्तियों पर वर्षों तक रोक लगी रहती है, और प्राइवेट सेक्टर में “experience required” वाली लाइन नई शुरुआत करने वालों के लिए दरवाज़ा बंद कर देती है।

कई कंपनियाँ इंटर्नशिप तो देती हैं, पर सैलरी नहीं। ऐसे में एक मध्यम वर्गीय युवा कहां जाए?


जॉब मार्केट और आर्थिक असमानता

बड़ी कंपनियाँ सिर्फ टॉप कॉलेजों से प्लेसमेंट करती हैं। गाँवों, कस्बों या छोटे शहरों के टैलेंटेड युवाओं को मौके तक नहीं पहुँचने दिया जाता। और जिनके पास “source” या “approach” होती है, वे आगे निकल जाते हैं – योग्यता पीछे रह जाती है।


डिग्री का प्रेशर, समाज का तनाव

“अब तक नौकरी नहीं लगी?”
“इतनी पढ़ाई का क्या फायदा?”
“अब तो शादी कर दो, लड़की नौकरी थोड़े करेगी!”

ऐसे ताने और बातें युवाओं के आत्मविश्वास को तोड़ते हैं। बेरोज़गारी सिर्फ एक आर्थिक नहीं, मानसिक और सामाजिक समस्या भी है।


समाधान की ओर एक कदम

  1. स्किल बेस्ड एजुकेशन को बढ़ावा देना होगा।
  2. इंडस्ट्री और कॉलेज के बीच बेहतर तालमेल बनाना होगा।
  3. युवाओं को स्टार्टअप और स्वरोज़गार के लिए प्रोत्साहित करना होगा।
  4. सरकारी भर्तियों की पारदर्शिता और गति में सुधार जरूरी है।
  5. और सबसे ज़रूरी – समाज को यह समझना होगा कि नौकरी न मिलना किसी की असफलता नहीं, सिस्टम की खामी है।

निष्कर्ष

डिग्री होना आज की तारीख में ज़रूरी है, लेकिन पर्याप्त नहीं।
भारत को सिर्फ पढ़े-लिखे नहीं, योग्य और आत्मनिर्भर युवाओं की ज़रूरत है। और इसके लिए हमें शिक्षा, उद्योग और नीति – तीनों स्तरों पर बदलाव की ज़रूरत है।

क्योंकि जब एक युवा बेरोज़गार होता है, तो सिर्फ उसका सपना नहीं, देश की प्रगति भी रुक जाती है।

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