दिल्ली में घर खरीदने की कठिनाइयों पर चर्चा

देश की राजधानी दिल्ली – एक ऐसी जगह जो लाखों लोगों के लिए सपनों का शहर है। अच्छी नौकरी, बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और व्यापार के अनगिनत अवसर। लेकिन जब बात आती है यहां अपना खुद का घर खरीदने की, तो यह सपना अक्सर संघर्ष की कहानी में बदल जाता है।
भले ही रियल एस्टेट कंपनियों के विज्ञापन में “आपका सपना, अब होगा अपना” जैसे जुमले सुनाई दें, लेकिन सच्चाई कहीं ज्यादा जटिल है।


1. रियल एस्टेट की ऊंची कीमतें

दिल्ली NCR क्षेत्र की संपत्ति की कीमतें देश की सबसे महंगी बाजारों में से एक हैं।

  • दक्षिण दिल्ली (ग्रीन पार्क, वसंत कुंज, ग्रेटर कैलाश): ₹20,000–₹35,000 प्रति वर्ग फुट
  • पश्चिमी/पूर्वी दिल्ली: ₹8,000–₹15,000 प्रति वर्ग फुट
  • नई दिल्ली के Lutyens जोन में तो कीमतें ₹1 लाख+ प्रति वर्ग फुट तक भी पहुंच जाती हैं!

एक आम मध्यम वर्गीय परिवार के लिए इतना बड़ा डाउन पेमेंट और भारी EMI चुकाना एक दशक से भी लंबा वित्तीय बोझ बन सकता है।


2. कानूनी और प्रॉपर्टी टाइटल की जटिलताएं

कई प्रॉपर्टी अब भी लाल डोरा ज़ोन, ग्राम सभा भूमि या अनधिकृत कॉलोनियों में आती हैं।

  • क्लियर टाइटल मिलना मुश्किल होता है
  • प्रॉपर्टी खरीदते वक्त नकली दस्तावेज़ या बिचौलिए की धोखाधड़ी का खतरा
  • कोर्ट केस में फंसी संपत्तियाँ और कब्जा विवाद आम हैं

3. बैंक लोन की मुश्किलें

बैंक होम लोन तो देते हैं, लेकिन

  • कम क्रेडिट स्कोर वालों को रिजेक्ट कर देते हैं
  • नौकरी में स्थायित्व न होने पर लोन स्वीकृति टाल दी जाती है
  • अनधिकृत संपत्ति पर लोन नहीं मिलता

इससे आम आदमी को कैश पेमेंट या महंगे प्राइवेट फाइनेंस की ओर रुख करना पड़ता है।


4. टैक्स, रजिस्ट्रेशन और अतिरिक्त शुल्क

घर की लागत केवल उसकी कीमत नहीं होती –

  • स्टांप ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन शुल्क (6–7%)
  • सोसाइटी मेंटेनेंस चार्ज, क्लब हाउस फीस
  • GST (नई प्रॉपर्टी पर लागू)
  • बिल्डर की ओर से छिपे हुए चार्ज

इन सबको मिलाकर कुल लागत अक्सर 20–25% तक बढ़ जाती है।


5. लोकेशन बनाम सुविधाएं

अगर आप किफायती घर देखना चाहते हैं, तो अक्सर दिल्ली की बाहरी सीमा (नरेला, बवाना, मंगोलपुरी) की ओर जाना पड़ता है –

  • लंबा सफर
  • परिवहन की कमी
  • स्कूल, अस्पताल जैसी सुविधाओं की दूरी
    जबकि बेहतर सुविधाएं वाले इलाकों में घर खरीदना वित्तीय रूप से असंभव लगने लगता है।

6. बिल्डर और प्रोजेक्ट डिले

कई बार लोग नए प्रोजेक्ट्स में निवेश करते हैं, लेकिन

  • निर्माण में देरी
  • बिल्डर दिवालिया घोषित
  • RERA नियमों की अनदेखी
    ऐसी स्थितियों में न घर मिलता है, न पैसा वापस।

समाधान की ओर कदम?

सरकारी हाउसिंग स्कीम्स जैसे DDA फ्लैट्स और PMAY (प्रधानमंत्री आवास योजना) एक राहत हैं, लेकिन इनमें

  • सीमित विकल्प
  • लंबे इंतज़ार
  • लॉटरी सिस्टम की अनिश्चितता

निष्कर्ष

दिल्ली में घर खरीदना आज भी एक सपना तो है, लेकिन बेहद जटिल और खर्चीला। इसमें केवल पैसे की नहीं, धैर्य, सही जानकारी और कानूनी समझ की भी ज़रूरत है।

यदि सरकार, बिल्डर और बैंक मिलकर पारदर्शिता, नियमों का सरलीकरण और स्मार्ट प्लानिंग करें, तो ये सपना हर नागरिक के लिए थोड़ा और सुलभ हो सकता है।


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