जब जनवरी की सर्द रातें हों और ठंडी हवाएं रोंगटे खड़े कर दें, तो पंजाब की धरती पर एक उत्सव ऐसा आता है जो गर्मी, उमंग और संगीत से सब कुछ सराबोर कर देता है — लोहड़ी।
लोहड़ी सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह पंजाबी संस्कृति, किसानी परंपरा और सामूहिक उत्सव भावना का प्रतीक है। यह एक ऐसा पर्व है जो मिट्टी की महक, लोकगीतों की मिठास और रिश्तों की गर्माहट से भरपूर होता है।
लोहड़ी का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
लोहड़ी मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाई जाती है, और इसे खासकर नई फसल (रबी की फसल) के आगमन पर उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
यह पर्व विशेषकर गन्ना, तिल, मूंगफली और मक्का के कटने के बाद किसानों के लिए खुशहाली और आभार का प्रतीक बन गया है।
“लोहड़ी केवल आग जलाने का त्योहार नहीं, वह एक धन्यवाद समारोह है – प्रकृति, फसल और परिश्रम के लिए।”
लोहड़ी के लोकगीत और नृत्य
लोहड़ी का उत्सव ढोल की थाप, भांगड़ा, गिद्दा और लोकगीतों के बिना अधूरा है। सबसे लोकप्रिय लोकगीत —
“सुंदर मुंदरिए हो!” —
जिसके पीछे दुल्ला भट्टी की वीरगाथा छिपी है, जिसने मुगलों के समय लड़कियों की रक्षा कर उन्हें सम्मान से ब्याहा।
अन्य लोकप्रिय गीत:
- “लोहड़ी आई, लोहड़ी लाई…”
- “होक्के टोक्के नाचिये…”
🎤 लोक गीतों के साथ घर-घर जाकर बच्चे मूंगफली, रेवड़ी, गजक मांगते हैं, जैसे दीवाली पर मिठाई बांटी जाती है।
अग्नि पूजन और परंपराएं
शाम होते ही लोग मोहल्लों में इकट्ठा होते हैं और जलाते हैं लोहड़ी की आग, जिसमें डाली जाती हैं:
- मूंगफली
- रेवड़ी
- तिल
- गजक
- मक्का की बालियां
लोग आग के चारों ओर घूमकर परिक्रमा करते हैं, कामना करते हैं सुख-समृद्धि की, और गाते हैं गीत।
नवजात और नवविवाहितों के लिए विशेष
पंजाब में यह पर्व विशेष रूप से नवविवाहित जोड़े और नवजात बच्चों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
- नवविवाहित दंपत्ति के लिए यह पहली लोहड़ी बेहद खास होती है —
उन्हें गिफ्ट, मिठाई, वस्त्र और आशीर्वाद दिए जाते हैं। - नवजात शिशु के लिए यह पहली सामाजिक स्वीकृति और उत्सव जैसा होता है।
लोहड़ी की पारंपरिक दावतें
लोहड़ी की रात पंजाबी थाली भी उतनी ही रंगीन होती है:
- सरसों का साग और मक्के की रोटी
- गुड़ और तिल की चिक्की
- गजक, रेवड़ी, मूंगफली
- और गर्मागरम खीर व लस्सी
यह केवल भोजन नहीं, संस्कृति की थाली है जो स्वाद और परंपरा दोनों समेटे होती है।
आधुनिक समय में लोहड़ी
शहरों में लोहड़ी भले ही अपार्टमेंट की छतों या कॉलोनी पार्कों तक सिमट गई हो, लेकिन इसका भावनात्मक जुड़ाव उतना ही गहरा है।
कई स्कूल, कॉलेज और कॉर्पोरेट ऑफिस भी अब लोहड़ी फंक्शन्स और थीम डेज़ मनाते हैं।
निष्कर्ष
लोहड़ी का लोहा सिर्फ आग में डाली जाने वाली लकड़ियों में नहीं है, वह उस संस्कृति में है जो पीढ़ियों से प्रकृति, परिवार और परंपरा के संग जीती आई है।
यह त्योहार हमें सिखाता है कि जब हम अपने मूल, अपनी मिट्टी और अपने लोगों से जुड़े रहते हैं, तभी हम वास्तव में समृद्ध होते हैं।