वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025: क्या है नया?
वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करते हुए, सरकार ने वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और नियंत्रण में बदलाव किए हैं। इसमें ‘वक्फ बाय यूजर’ की अवधारणा को समाप्त करने, जिला मजिस्ट्रेट को वक्फ संपत्तियों के विवादों में निर्णायक अधिकार देने और वक्फ बोर्ड की नियुक्तियों में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ाने जैसे प्रावधान शामिल हैं। इन बदलावों को मुस्लिम समुदाय के कुछ वर्गों ने अपनी धार्मिक संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने के प्रयास के रूप में देखा है।
मुर्शिदाबाद में हिंसा: घटनाक्रम
10 से 12 अप्रैल 2025 के बीच, पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद, नॉर्थ 24 परगना, हुगली और मालदा जिलों में वक्फ अधिनियम के विरोध में हिंसक प्रदर्शन हुए। इन घटनाओं में 3 लोगों की मृत्यु हुई, 15 पुलिसकर्मी घायल हुए और 300 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया। प्रदर्शनकारियों ने वाहनों को आग लगाई, दुकानों और घरों में तोड़फोड़ की, जिससे व्यापक क्षति हुई।
खुफिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इन हिंसक घटनाओं में बांग्लादेशी कट्टरपंथी संगठनों जैसे जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (ABT) की संलिप्तता पाई गई है, जिन्हें स्थानीय राजनीतिक नेताओं का समर्थन प्राप्त था।
न्यायिक प्रतिक्रिया: सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को 7 दिन में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत ने यह भी कहा है कि अगली सुनवाई तक वक्फ परिषद और बोर्डों में कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने लोगों से हिंसा का सहारा न लेने की अपील की है और कहा है कि अदालत सभी पक्षों की बात सुनेगी।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधनों को मुस्लिम समुदाय के हितों के खिलाफ बताया है और आरोप लगाया है कि यह कानून बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से लाया गया है।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस अधिनियम का विरोध करते हुए कहा है कि वक्फ संपत्तियां मुस्लिम समुदाय की हैं और सरकार को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
निष्कर्ष
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 ने देश में एक संवेदनशील मुद्दे को जन्म दिया है, जिससे सामाजिक और धार्मिक तनाव बढ़ा है। मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा इस बात का संकेत है कि ऐसे कानूनों को लागू करते समय सभी समुदायों की भावनाओं और अधिकारों का ध्यान रखना आवश्यक है। अब सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के आगामी फैसले पर टिकी हैं, जो इस मुद्दे पर दिशा तय करेगा।